झूठ की दुकान
झूठ की दुकान खूब चली,
“सच”, सच बोलता रहा
उसकी ना चलनी थी, ना चली,
पर ये ज्यादा लंबा चलने वाला ना था
काठ की हांडी में एक बार तो पका लिया,
फिर दोबारा चढ़ी, जलनी ही थी सो जली।
सच्चाई तो फिर सच्चाई है,
एक ना एक दिन लगेगी भली
झूठ को देखो, घूमे है गली गली।
✍️.. गीता
मैडम गली-गली के बीच
योजक चिन्ह का प्रयोग होना चाहिए था।
सत्य ही टिकता है झूँठ की उम्र लम्बी नहीं होती।
सत्य बोलने के प्रति जागरूक करती हुई रचना।
धन्यवाद जी🙏
वेलकम
बहुत ही सुन्दर तरीके से सच झूठ का विश्लेषण किया है, वाह गीता जी
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी 🙏
मुझे बहुत अच्छी lagi
आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
Very nice
Thank you Kamla ji 🙏
Bahut khoob kavita
Thanks Allot Piyush ji 🙏