दादा जी के साथ बिताए पल
बिटिया रानी बाज़ार गयी
छोटा सा सामान लेने को,
लौटी तो लगी उदास सी कुछ
पूछा तो हो गई रोने को।
दादी माँ ने पुचकारा फिर
बोलो गुड़िया क्या हुआ तुम्हें,
कहीं किसी ने कुछ बोला क्या
क्यों लगी उदासी आज तुम्हें।
गुड़िया बोली दादी अम्मा
मैंने देखा एक नजारा,
दो बच्चे थे मेरी वय के
साथ में उनके दादा जी थे।
बच्चे अपने दादा जी से
यह ले दो, वह ले दो की जिद
किये जा रहे थे,
दादा जी लिए जा रहे थे सब चीजें।
पांच बरस पहले की बातें
मेरे मन में भी उग आई
जब मैं अपने दादा जी का
हाथ पकड़ बाज़ार गई थी।
कितनी खुशियां हाथ में थी तब
सपने जैसा लगता है अब
दादा जी चल दिये स्वर्ग को,
छह महीने होने को हैं अब।
दादा जी के साथ बिताए
पल मेरी यादों में आये
इसीलिये उनके दादा को
देख मेरे आंसू भर आये।
आपकी रचना ने बाबा की याद दिला दी बहुत भावपूर्ण रचना
कविता के भाव से तारतम्य बैठाने और उसे महसूस करने हेतु हार्दिक धन्यवाद, प्रज्ञा
बहुत ही सच्ची और मार्मिक कविता , जिन्होंने दादाजी देखे होंगे, उनकी आंखों में आसूं छलक पड़ेंगे।
बहुत सारा धन्यवाद है आपको
अपने दादा को याद करती एक प्यारी बच्ची की प्यारी सी कविता…..बहुत ही हृदय स्पर्शी चित्रण।
आपने सबके बिछड़े दादा जी याद दिलवा दिए…..वो भी श्राद्धों में।
आपकी सराहना हमारी पूँजी है । भाव से जुड़ाव बनाने और सुंदर समीक्षा हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद है गीता जी, आपकी समीक्षा हमारा उत्साह है। आपको सादर अभिवादन
दादा-पोती के प्रेम को प्रकट करती, भावपूर्ण ,मार्मिक, सुंदर रचना
सादार धन्यवाद जी
बहुत खूब
बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी।
अपनों के प्रति प्रेम भावना एवं दादा दादी के प्रति बच्चों की विशेष प्रेम भावना तथा संसार की नश्वरता को प्रकट करती बहुत सुंदर रचना
सादर धन्यवाद जी