दुर्जनों को सुख मिलता है सज्जनों को चिढ़ाके ।

दुर्जनों को सुख मिलता है सज्जनों को चिढ़ाके ।
ये उसके अपने प्राकृत स्वभाव है, बदलते नहीं बदलते है ।
इन्हें परनिंदा, दुसरों की पीड़ा से आनंद मिलता है ।
यह दुर्जनों का अपना स्वभाव है, इसलिए यह दुर्जन के वंशज है ।।1।।

सज्जनों को दुखावस्था देखकर इसे परमानंद की अनुभूति होती है ।
यह सर्वदा गलत विचारों में विचरता है, इसे कोई संत नहीं भाता है ।
यह असंतों का संगी , दुराचारियों का साथी है ।
लोभी, भोगी, कामी इनके रिश्तेदार है ।।2।।

इसके साथ हमेशा खड़ा रहता लाखों आताताई पुरूष है ।
क्योंकि इसके पास अधर्म के पैसे, गरीबों के अन्न है ।
इसके आत्मा भी इससे दुखी है ।
क्योंकि ये हमेशा सज्जनों को सताता है ।
दुर्जनों को सुख मिलता है, सज्जनों को चिढ़ाके ।।3।।
कवि विकास कुमार

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