दो तरह के लोग..
” गीता” इस संसार में, दो तरह के लोग,
परवाह नहीं इस भयंकर रोग की, भागे फिरते रोज़ ।
दूजे वाले डरकर रहते, घर से बाहर कम निकलते,
मगर मज़े की बात देखो, …….
दोनों ही एक – दूजे को बेवकूफ़ हैं समझते
……….✍️ गीता..
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी
मैं दूसरे प्रकार वाली हूँ
मुहल्ले वाले चेहरा भी भूल जाते हैं मेरा
मैं भी 🙂
Atisunder
शुक्रिया भाई जी🙏
अतिसुन्दर
Thank you very much Isha ji 💐
गीता जी, नाम ही गीता है ज्ञान का भंडार है। पारखी नजर जीवन के बारीक पहलू पर जा पहुंची है। आपकी लेखनी ने सत्य को उजागर किया है। यह आपकी कवित्व क्षमता का परिचायक है। keep it up
अरे ,सतीश जी इतना सारा सम्मान।🙏🙏
बस यूं ही रोज़ सोचती थी कि लोग थोड़ा सा और पालन करते लॉक डाउन का तो कदाचित ये कोरोना इतना ना फैलता।ये मेरा व्यक्तिगत विचार है। बस उसी सोच के कारण ये पंक्तियां लिख दीं।
……. आपकी सुंदर समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद 🙏
बहुत बखू
आपकी कविता बेहतरीन है
बहुत ही अच्छी रचना, हमारी लापरवाही को बताती
अस्तित्व बनाये रखने को थोड़ा- सा धैर्य रखने का पाठ सिखाती
कविता के भाव समझने के लिए आपका धन्यवाद सुमन जी 🙏
इस मुद्दे को उठाने के लिए बधाई के पात्र हैं मानुषजी।
एक बात मै यह जोङना चाहुगी कि टिप्पणी से पहले कविता की गुणवत्ता को भी देखा जाए।
निष्पक्षता से मूल्यांकन किया जाये, ताकि आस्था बनी रहे ।
सादर धन्यवाद ।
सुमन जी ये वाला मैसेज आपको मोहन जी को रिप्लाई करना था।शायद गलती से मुझे हो गया है।कृपया इसे यहां से डिलीट कर दें।और मोहन जी को ही भेजें।धन्यवाद।
बहुत सुन्दर लेखनी
समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद मैम , हार्दिक आभार 🙏
bahut hi sundar
Thanks for your lovely complement Indu ji 🙏