निषेध सत्य की खोज
निषेध सत्य की खोज…
मैं बिक गया हूं दोस्तों
खरीद लिया ईमान मेरा
चंद कागज के टुकड़ों ने दिग्भ्रमित किया
मैं भूल चुका हूं कर्तव्य मेरा-क्या काम मेरा
लोकतंत्र का था मैं स्तंभ कभी
निष्पक्षता था धर्म मेरा
पर नीलाम है अब कलम मेरी
हां, गुलाम है अब सोच मेरी
पाखंडीयो का गुणगान ही
अब रह गया है कर्म मेरा
अब याद आते हैं वो पल
जब सत्य की ही खोज में
न देखते थे आज-कल
पर अब तो आंखें मूंदकर
और कान अपने बंद कर
मैं चीख और चिल्ला रहा
और कर रहा छल से भी छल
हां कर दिया सब ज्ञान विफल
अब क्षीण है विवेक-बल
मैं जान कर भी मौन हूं
न याद है मैं कौन हूं
पर दोष सिर्फ मेरा नहीं
तुमने तिलक उसका किया
साम दाम भय भेद से जिसने
मुझे बेड़ियों में कैद किया
अब आवाज़ जब भी उठाता हूं
चाटुकार मैं बन जाता हूँ
हां, डर चुकी देही मेरी
हाँ, डर चुकी है सोच मेरी
उन धमकियों की आवाजों में
निषेध सत्य की खोज मेरी
निषेध सत्य की खोज मेरी
-अनमोल नैलवाल
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