पथप्रदर्शिका
लडकियों की पथप्रदर्शिका थी जो
घर से निकल पाठशाला का रूख करवायी थी जो
पति ज्योतिबा संग शिक्षा की अलख जगाने चली थीं जो
तमाम बाधाओं पे पार पाते हुए,
पहली पाठशाला बालिकाओं की खोली थी जो
“खूब पढो” सिखाने वाली, सावित्री बाई फूले थी वो
लडकियों की पथप्रदर्शिका थी जो
घर से निकल पाठशाला का रूख करवायी थी जो
पति ज्योतिबा संग शिक्षा की अलख जगाने चली थीं जो
तमाम बाधाओं पे पार पाते हुए,
पहली पाठशाला बालिकाओं की खोली थी जो
“खूब पढो” सिखाने वाली, सावित्री बाई फूले थी वो
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तभी तो आज आपकी कलम चल रही,
धारा से लेकर बेटी गगन में उड़ रही|
जा घर-घर बतला दो रूढ़िवादीओ को,
मत भोग विलास की वस्तु समझो,
हम किसी के हाथ की खिलौना नहीं
जो किसी के हाथों में खेल रही|
👌✍👌✍
खूबसूरत आपकी कविता
ऋषिजी सादर आभार ।
हाँ हम सभी उनकी ऋणी है
खूब पढो” सिखाने वाली, सावित्री बाई फूले थी वो,
वाह, बहुत खूब लिखा है ।
आपने सावित्री बाई फुले जी को शत शत नमन।
बहुत बहुत धन्यवाद ।
उनके अथक प्रयासों के बिना हम जैसी महिलाओं को आज भी चहारदीवारी के अंदर ही रहना पङता ।
आधी आबादी कहलाने वाली महिलाओं की क्षमताओं का उपयोग शायद देश के विकास में पूरी तरह नहीं हो पाता
सावित्री बाई फूले जी हमारे देश की प्रथम महिला शिक्षिका और महिला अधिकारों की आवाज उठाने वाली एक महान समाजसेविका थीं। आपने कविता के माध्यम से उनका जिक्र किया, आप धन्यवाद की पात्र हैं।
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना
शत शत नमन भारत की प्रथम शिक्षिका को