पल को लुभा जाती हैं
ख्वाहिशें मेरी
मुझे स्वप्न नित दिखाती हैं
एक पूरी हुई
अन्य उभर आती हैं।
जिनको मालूम नहीं
पता मेरी निगाहों का
नैन के तीर मेरे
दिल में चुभा जाती हैं।
उड़ रही तितलियां
दूर बहुत ऊँचे में
हिला के पंख
मेरे पल को लुभा जाती हैं।
हवाएँ चल रही हैं
बिन किये आवाज कोई,
जाते जाते वो मेरे
होंठ सूखा जाती हैं।
वाह क्या गजब लिख दिया सर
बहुत सुंदर।
बहुत ही सुन्दर शब्दों में रचित आपकी कविता बहुत कुछ बयां कर रही है।
बहुत ही सुंदर कविता
बहुत सुंदर