मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा

करो कुछ भी मगर मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा,
किसी का दर्द बढ़ जाये ये सब करना नहीं अच्छा।
करो कुछ भी मगर मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा,
किसी का दर्द बढ़ जाये ये सब करना नहीं अच्छा।
शरद के शशि रजत बिखरा रहे हों आसमां से जब,
नजारा देख कर नजरें चुराना लेना नहीं अच्छा।

Related Articles

Responses

  1. कवि सतीश जी की बहुत ही भाव पूर्ण रचना । लाजवाब अभिव्यक्ति और सुंदर शिल्प लिए एक ख़ूबसूरत कविता.

New Report

Close