वक्त हमारा है
हम कहते रहे वक्त हमारा है
जब ठोकर लगी तब ख्याल आया
ज़माना सही कहता है
वक्त न हमारा है न तुम्हारा है
उसे तो बस चलते ही जाना है
हम इन्सान क्यों नही
वक्त के संग समझौता करते है ?
हम अपने जीवन में काश!!!!
वक्त के संग कदम से कदम
मिला के चले तो गर्व से कहेंगे
देख -आज भी वक्त हमारा है।
बहुत खूब बहुत सुंदर पंक्तियाँ
धन्यवाद।
बहुत सुंदर लिखा है अमित जी आपने, बहुत खूब
धन्यवाद
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद
बहुत सुन्दर विचार,
वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने से वक्त क्या ये युग भी हमारा हो सकता है।
और कुछ विचार रखिये आते रहिये
शुक्रिया प्रज्ञा जी।
नमस्कार