हाय श्याम ! अब ऐसी स्याही कहां से लाऊं???
लिखने को साहित्य अब
होता है मन बेचैन
इस जीवन की व्यस्तता
लेने ना देती चैन,
लेने ना देती चैन
लिखने को व्याकुल है मन
मन के कागज पर
लिखने को आतुर है तन
हाय श्याम ! अब ऐसी स्याही कहां से लाऊं ??
मानवता का हो कल्याण ऐसे भाव कहां से लाऊं ??
लिखने को साहित्य अब
होता है मन बेचैन
इस जीवन की व्यस्तता
लेने ना देती चैन,
लेने ना देती चैन
लिखने को व्याकुल है मन
मन के कागज पर
लिखने को आतुर है तन
हाय श्याम ! अब ऐसी स्याही कहां से लाऊं।।
आपकी लेखनी बहुत ही शानदार है हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत रचना आप हर कविता को रहता है बे लगती हैं और पाठक को ह्रदय से पड़ने पर मजबूर कर देते हैं आपकी लेखनी को सलाम है ऐसे ही साहित्य को आगे बढ़ाते रहिए और हिंदी को सफल बनाते रहिए आगे से कभी हो तो हिंदी की दिन पर दिन प्रगति ही होगी आप एक प्रोफेशनल कवि की
भांती लिखती हैं
आपकी योग्यता का अंदाजा लगा पाना किसी के बस की बात नहीं है
धन्यवाद