मां

मां क्या-क्या दुख सहती है,
हर फरमाइश पूरी करती है ।

हर हुकुम बजाती रहती है,
खुद से बेपरवाह रहती।

बच्चों की चिंता करती है ,
अलार्म क्लॉक सी जगती है

अपने सपनों को छोड़ ती है
दिल को खुद-ब-खुद तोड़ती है।

आकाश निहारा करती है
पंछी बन उड़ जाना चाहती है।

अपने पंख खुद ही नौचती है।
दिल का रुख खुद ही मोड़ती है,

बच्चों की चिंता करती है
रातों को जागती रहती है।

हम सबको सुख देने के लिए,
वो चैन से ना सो पाती है।

मां ही आखिर वो शक्ति है,
भगवान से पहले आती है,
भगवान से पहले आती है।

निमिषा सिंघल

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