मेरी मां
रोज सुबह बच्चों को उठाती,
कभी-कभी पानी छिड़काती।
एक-एक करके काम निबटाती,
बीच-बीच में लेती जाती ,
हम सब के झगड़ों में रस।
बीच में कहती हो गया बस,
पढ़ो लिखो ना लडों भिडो।
पड़ जाएगा थप्पड़ अब,
काम में दिनभर डूबी रहती,
चकरी सी वो घूमा करती,
पूरे घर की चिंता करती,
रात में थक सो जाती बस।
नींद भरी आंखों से कहती
रख ली किताबें या आऊ अब।
गुस्से में भी प्यार झलकता,
मेंरी मां का लाड़ झलकता।
मीठी झिडकी सुने बिना मां
तेरा चेहरा देखे बिना मां,
ना आए जीवन में रस।
कैसे मैं सो जाऊं अब।
निमिषा सिंघल
बहुत सुन्दर
Dhanyavad
Nice
Thank you
वाह
Thank you
Wah