जुदाई का दर्द
जुदाई का दर्द
कांटों से ही प्रेम हो गया ,कलियां दिल में चुभती है
दर्द भारी यादों में तेरी मेरी अखियां जगती हैं
ज्यादा जुल्म किया फूलों ने कांटे बस बदनाम हुए
जो चुभते रहते थे वो ही जख्मी दिल के बाम हुए।
अपने हुए पराए जैसे जो इस दिल में रहते थे
बने गैर मेरे अपनों से, जिनको दुश्मन कहते थे
उर में गहरा घाव हुआ है पीर नहीं रोका जाता
बाढ़ असीमित है दृग में ये नीर नहीं रोका जाता
एक नहीं सौ बार तुम्हारी यादों में ही जलता हूं
उगने का है नाम नहीं अब सदा शाम सा ढलता हूं
प्रेम वृक्ष की डाली से मैं पत्ते जैसा बिछड़ गया
सच्चा था मेरे दिल लेकिन तेरे गम से बिगड़ गया
मेरे इस नाजुक दिल में तुम आग लगाकर चले गए
करके वादा पावनता का, दाग लगाकर चले गए
लाखों दोष लगा लो मुझ पर किन्तु सनम ये ध्यान रहे
प्रेम भले ना दो लेकिन मानवता का सम्मान रहे
शायद मैं ही मूर्ख मिला था खरबों की जनसंख्या में
धोखा दे दोगी मुझको तुम, ना था मैं इस शंका में
पढ़ लेता तेरा दिल तो मैं वक्त नहीं जांया करता
तुझे मनाने के खातिर मैं रक्त नहीं जांया करता
प्रेम महज इक धोखा है मेरे दिल को एहसास हुआ
तड़प तड़प तेरी यादों में ,मैं अब जिंदा लाश हुआ।
✍️शक्ति त्रिपाठी देव
बस्ती , उत्तर प्रदेश
भारत
सुन्दर प्रस्तुति
“दर्द भारी की” जगह पर “दर्द भरी” आएगा।
वाह बहुत सुंदर
बहुत सुंदर
nice
सुंदर चित्रण
सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह, ‘ज्यादा जुल्म किया’ ‘बस बदनाम हुए’ में सुंदर अनुप्रास का प्रयोग हुआ है। ‘ करके वादा पावनता का, दाग लगाकर चले गए’ में बहुत सुंदर विरोधाभास का चित्रण हुआ है, बहुत खूब
Waah
दर्द भरी
ह्रदयस्पर्शी रचना
Good