खारा पानी
समन्दर भी ना जाने,
उसमें कितनी नदियां समाती हैं।
ये तो नदिया ही जाने,
उसको कितनी सौतन मिल जाती हैं।
मीठे – मीठे पानी की नदियां,
समन्दर की ओर बह जाती हैं।
फिर , मीठा पानी मिल – मिल कर,
खारा क्यूं हो जाता है।
इतनी नदियों को देख समन्दर में,
हर नदी आंसू बहाती है।
मिलती है , पर खिलती नहीं,
खारा पानी कहलाती है।।
Nice Poetry
Thank you 🙏
अतिसुन्दर
धन्यवाद जी
बहुत ही बेहतरीन
बहुत बहुत धन्यवाद
Sunder
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
Bahut hi gehrai hai aapki Kavita mein
Thanks pragya ji. 🙏
वाह जी खूब
Thanks Allot Piyush ji 🙏