Categories: मुक्तक
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नहीं। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥…
नज़र ..
प्रेम होता दिलों से है फंसती नज़र , एक तुम्हारी नज़र , एक हमारी नज़र, जब तुम आई नज़र , जब मैं आया नज़र, फिर…
मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ
मै चंदुलाल का तन हूँ। मैं खुब चंद का मन हूँ। मैं गुरु घांसी का धर्मक्षेत्र हूँ। मैं मिनी माता का कर्म क्षेत्र हूँ।। मैं…
दोस्ती से ज्यादा
hello friends, कहने को तो प्रतिलिपि पर ये दूसरी कहानी है मेरी लेकिन सही मायनो मे ये मेरी पहली कहानी है क्योकि ये मेरे दिल…
जीवन के कठोर अनुभव और सच्चाई से लबरेज है यह कविता, बार बार पढ़ने और सोचने पर मजबूर कर रही है, आपकी लेखनी विलक्षण है, जन-भाषा का सुंदर प्रयोग है, बहुत सुंदर कविता।
बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद
Nice
धन्यवाद
बहुत सुंदर कविता है भाई जी। हृदय स्पर्शी रचना।
शुक्रिया बहिन
बहुत ही भावपूर्ण, सुन्दर अभिव्यक्ति
Bahut khoob
बहुत सुंदर प्रस्तुति