बेटी

दुष्टों ने हिंद की बेटी को पलित किया,
हिन्द का दिल सहम उठा l

वर्षों पहले दुष्टों के विरोध में नारा उठा था,
हिन्द ने केंडल मार्च निकाला था l

हिन्द ने न्याय के लिए हूंकार भरा था,
पूरा देश जाग गया था।

तब जाके दुष्टों को पकड़ा था,
हिन्द ने फांसी की नारा लगाया था l

फिर क्या था फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया था,
महीनों में फांसी सुनाया था।

न्यूज में खूब डीवेट चला था,
कुछ ने खुद को बड़ा चमकाया था l

जिसे सुनकर आज भी दिल सहम उठता,
वो दुष्कर्म कहीं न्यूज में खो गया था।

दुष्ट वर्षों तक सरकारी निवाला तोड़ रहा था,
लोकतंत्र का हथकंडा अपना रहा था।

वकीलों ने पूरी सिद्दत से साथ निभाया था,
हर वार तारीख टलवाया  था।

ऎसे लोकतंत्र में इंसाफ कैसे मिल पाता,
जहाँ राष्ट्रहित के फैसले से शाहीन बाग बन जाता l

एक घाव भरा भी न था,
एक और…………….. l

धिक्कार एसी लोकतंत्र पर होता,
राष्ट्रहित छोड़ जहाँ दुष्टों का पोषण होता l

फ़िर भी हिन्द शांत है बैठा,
मानो चूडियां पहन है बैठा l

या और………देखने को तेरी आँखे तरस रही है ?
याद रखना, वो तेरे घर की कोई एक है l

तू बेफिक्र घर में दुबक के बैठा है,
पर दुष्टों ने तेरे घर भी आँख गड़ाए बैठा है l

कर ले आवाज बुलंद आज आपनी,
वरना वो समय दूर नहीं खुद को भी अकेला पाएगा l

तब तू हुंकार नहीं गिड़गिड़ाएगा,
पूरे हिन्द को किसी कोने में छिपा पाएगा l

जागो मेरे हिन्द के दिलेर,
इनको उनकी औकात दिखाओ l

हिन्द की बेटियों को उन्मुक्त पवन दिलाओ,
……………………. उन्मुक्त पवन दिलाओ ll

Rajiv Mahali

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Responses

  1. बेटियों पर सरेराह हो रहे अत्याचारों पर आपकी कविता ने पूर्ण प्रकाश डाला है। आपके द्वारा गहरी अनुभूति को बयां किया है।
    सुन्दर अभिव्यक्ति

  2. निर्भया कांड का जिक्र करते हुए देश की प्रत्येक बेटी के लिए आवाज़ बुलंद की है । कविता में अत्याचार और अताचारियों के खिलाफ पूरे देश को एक जुट होने की बात कही है जो कि,बिल्कुल सही और समसामयिक आवश्यकता है । बहुत ही सुंदर रचना और बेहतरीन प्रस्तुति ।

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