खुशबू यहाँ तक आ रही है
आपकी नेह भरी सोच की
खुशबू यहाँ तक आ रही है,
यह पवन दे मंद झोंका,
मन ही मन मुस्का रही है।
बात पूछो तो न बोली
बस इशारा कर रही है।
लग रहा है आपकी ही
भाँति यह शरमा रही है।
अबके जब भेजो पवन को
साफ कह देना इसे
छोड़कर सारी झिझक
सब कुछ बता देना मुझे।
डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत
वाह जी वाह, बनी रहे, मस्त कविता
धन्यवाद जी
मनोरम कविता
सादर धन्यवाद
बहुत खूब
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर शिल्प और खूबसूरत शब्दों से परिपूर्ण अति सुन्दर कविता है । कवि सतीश जी की बहुत ही भाव पूर्ण रचना और उसकी शानदार प्रस्तुति