क्रोध ना किया करें, क्रोध से रहें परे
क्रोध ना किया करें,
क्रोध से रहें परे
गुस्सा है माचिस की तीली सा,
औरों को जलाने से पहले
खुद को जलना पड़ता है
ये वो विष हैं जो,
औरों को पिलाने से पहले
खुद को पीना पड़ता है
अगर आप हैं सही तो,
गुस्सा करने की ज़रूरत नहीं
यदि गलती से हो जाए गलती,
तो गुस्सा करने का हक ही नहीं
शांति भी एक शक्ति है,
इस शक्ति की पहचान करें
स्व-चिंतन से सोचें सब कुछ,
फ़िर इसका रस-पान करें
प्रतिबिंब ना देख सकें,
हम कभी खौलते पानी में
सच्चाई ना दिखलाई देगी,
कभी क्रोध की अग्नि में
क्रोध में विध्वंस छिपा है,
शांति में सुख का है वास
आज अभी अपना कर देखो,
मिट जाएंगे सारे त्रास
*****✍️गीता
यह सत्य है पर गुस्सा आना मानव स्वभाव का अंग है और आवश्यक भी है कोशिश यह करनी चाहिए कि अनौपचारिक क्रोध ना आये
मैं आपकी बात से सहमत हूं प्रज्ञा लेकिन कोशिश तो कर सकते हैं कि गुस्सा कंट्रोल रहे इसीलिए ये सब समझाया है ।अब गुस्सा सेहत के लिए हानिकारक तो है ही ।…..लगता है आज कुछ ज्यादा ही ज्ञान बांट दिया हा हा हा , यही तो हमारी काम है ।
वही मैंने कहा दी जायज गुस्सा आना चाहिए नाजायज नहीं |
अच्छी बात है…
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया भाई जी 🙏
कवि गीता जी ने क्रोध न करने की उच्चस्तरीय सलाह दी है। बहुत खूब, सुन्दर रचना
कविता के भाव को समझने के लिए आपका बहुत बहुत…. धन्यवाद सतीश जी.जैसा कि प्रज्ञा जी कहा है कि अनावश्यक,या अनौपचारिक क्रोध तो बिल्कुल ही ना करें .सेहत के लिए हानिकारक होता है..
समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.
बहुतही सुन्दर अभिव्यक्ति