हौसला रख आगे बढ़
कविता – हौसला रख आगे बढ़
(रोला छंद का रूप- मात्रा 11-13)
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मंजिल पानी है तो, हौसला रख आगे बढ़,
विचलित मत हो किंचित, जीत का स्वाद तू चख।
अपने को कमजोर, समझ कर भूल न कर तू,
शक्ति जगा भीतर की, केवल सत्य से डर तू।
निडर वीर तू जगा, उमंग को अपने भीतर,
पा लेने की मुखर, आग हो तेरे भीतर।
राह भरे कंकड़ हों, तब भी तेज ही चल ले,
मंजिल तेरे आगे, मंजिल को अपनी कर ले।
————- डॉ0 सतीश पाण्डेय
वाह वाह सर अति उत्तम क्या बात है सुन्दर रोला छंद
बहुत सुंदर रोला छंद से सजी कविता
कवि सतीश जी की बहुत ही सुन्दर, रोला छंद से सुशोभित अति सुन्दर कविता ।”मंजिल पानी है तो, हौसला रख आगे बढ़,
विचलित मत हो किंचित, जीत का स्वाद तू चखअपने को कमजोर, समझ कर भूल न कर तू,”
कवि सतीश जी की बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं ,कवि हौसला बढ़ाने की बात करते हैं और स्वयं को कमज़ोर समझने को मना किया है , विचलित ना होने की भी सुंदर सलाह दी है , उसके बाद जीत की बात,जो किसी के भी उत्साह वर्धन में सहायक होगी । बहुत शानदार प्रस्तुति है , वाह👏
बहुत ही सुन्दर, बहुत शानदार कविता
जय हो शानदार पक्तियां
Wah wah jabrdast
बहुत ही सुन्दर सन्देश।
अतिसुंदर