‘रोटी की कीमत’
रोटी की लालसा में
भटकते रहते हैं
दर-दर की ठोकरें खाते रहते हैं
रोटी की कीमत क्या होती है
यह सिर्फ हम ही समझते हैं
दिन भर उठाते हैं बोझा
तब रात को दो निवालों से
पेट भरते हैं
किस्मत वाले हैं वो लोग
जो दो वक्त की रोटी का जुगाड़
आराम से करते हैं…
बहुत खूब
धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद