पूँजी तेरे खेल निराले

पूँजी तेरे खेल निराले
जिसकी जेब में भर जाती है
उसका संसार बदल जाती है,
धीरे-धीरे आकर तू
मानव व्यवहार बदल जाती है।
दम्भ, दर्प, मद, गर्व आदि
संगी साथी ले आती है।
तेरे आने से मानव की
आंखों में पट्टी बंध जाती है,
सब कमतर से लगते हैं
फिर अहं भावना आ जाती है।
पूँजी तेरे खेल निराले
किसी को नहला जाती है,
लद-कद कर घर भर जाती है,
किसी को सूखा रख देती है,
भूखा ही रख देती है।
कोई मेहनत कर के भी
दो रोटी नहीं कमा पाता है
कोई बिना किये कुछ भी
खातों को भरता जाता है।
पूँजी तेरे खेल निराले
सचमुच तेरे हैं खेल निराले।

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Responses

  1. “कोई मेहनत कर के भी दो रोटी नहीं कमा पाता है
    कोई बिना किये कुछ भी खातों को भरता जाता है।”
    कवि सतीश जी की यह कविता जीवन की सच्चाईयों को बयान करती है ।अपने आस पास बहुत लोग ऐसे होते हैं जो काम मेहनत में भी भरपूर धन पाते हैं,और कुछ लोग बहुत मेहनत करके भी है कम ही कमा पाते हैं।….लेकिन हम सब सुख धन से ही उठा पाएं,ये जरूरी नहीं है

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