हे धरित्री
हे धारित्री,
पञ्च महाभूतों में से एक तुम,
तुमसे ही उत्पन्न होकर भी मानव
अछूता रहा तुम्हारी सहनशीलता के गुण से..!!
काश! तुम्हारे धैर्य का अंशमात्र भी
वह आत्मसात कर पाता अपने भीतर तो
आज प्रश्नचिन्ह न लगा होता उसके अस्तित्व पर..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
धरती मां की सहनशीलता के गुण पर आधारित बहुत सुंदर रचना है अनु जी, काबिले तारीफ प्रस्तुतीकरण।
बहुत सुन्दर रचना
अतिसुंदर भाव