चाँदनी की आर में कौन है?

आज की रात मेरी इम्तहान की घडी है।
देखना है उस चाँदनी के पीछे कौन खड़ी है।।
पहले तो चाँदनी रात में इतनी रौनक न थी।
जरूर इस चाँदनी की आर में कोई न कोई छिपी है।।
ए क़ाबिल दिल मुझे चाँदनी के उस पार ले चल।
जिस पार चाँदनी रात खुद पे नाज कर रही है।।
चित्र और कविता में तालमेल बैठाती हुई बहुत सुन्दर कविता, सुन्दर शिल्प और सुन्दर भाव
आपकी समीक्षा मेरे लिए अनमोल तोहफ़ा है।
बहुत सुंदर रचना की है आपने
अवलोकन के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
वाह क्या बात है