पापा जी की खेती
पापा की खेती, धूप में सोना
हर सुबह उठते ही हल चलाते
बियाबान खेतों में बूंदों की टोपी
मेहनत की बूँदें, हर दाने में
ट्रैक्टर की आवाज़, गूँजती सवेरा
पसीने की महक, मिट्टी की खुशबू
फसल के पत्ते, गाते हैं गीत
धान की बालियाँ, लाती हैं हँसी
पापा कहते, “भूख को न बचा, परिश्रम कर”
उनका हाथ पकड़ कर, सीखा मैंने चलना
खेत के किनारे, बड़ का पेड़
छाया देता, थके हुए को आराम
बरसात की बूंदें, जब गिरती हैं
धरती में जड़ें गहरी होती हैं
हर कटाई में, पापा का मुस्कान
फसल घर में, खुशी का आह्वान
गाँव की गलियों में, उनकी गिनती
सब कहते, “सच्चा किसान यही है”
रात के अंधेरे में, दीपक जलता
पापा के सपनों की रोटी बनती
जब फसल लाती है सुनहरी धूप
पापा कहते, “इसी में है जीवन का मूल”
इस खेती में है हमारा अभिमान
पापा की किसानी, हमारे दिल की शान।- सुख मंगल सिंह
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