Aaina

वह आईना मुझसे कितना कुछ कहता हैं,
रोज़ सवेरे वह मेरे दिदार को तरसता हैं।
मुस्कुराऊँ जो मैं उसे देखकर,
वह फिर मुस्कुराता है।
सवारु जो मैं खुद को उसके सामने,
वह भी होले से शरमाता हैं।
अपने रूप को निहारने से फुरसत कहा मुझे,
पर वो मेरे मन की खूबसूरती को भी झलकाला हैं।
चाहे लाख कमीया हो मुझमें,
वो हमेशा खुद को स्वीकारना सीखाता हैं।
खुबसूरत बहुत हो तुम,
हर बार मुझे देखकर यही कहता हैं।
मायूस हो जाती हूँ जब कभी मैं,
चहरे पर आसूँ अच्छे नहीं लगते तुम्हारे,
हसकर मुझे यहीं कहता हैं।
सारे रिश्ते मतलबी होते है यहाँ,
आईना बेमतलब बेवजह हि,
सुबह से शाम मेरी इबादत करता है।
न जाने क्यों,
वह आईना मुझे बहुत अपना सा लगता हैं।

– Harshita Sankhla

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