मेरे लफ्ज़ ग़ुलाम
मेरे लफ्ज़ ग़ुलाम बन गए तेरे लफ़्ज़ों की सरफ़रोशी से राजेश’अरमान’
मेरे लफ्ज़ ग़ुलाम बन गए तेरे लफ़्ज़ों की सरफ़रोशी से राजेश’अरमान’
तेरे शिकवे कभी न हवा हो सके मेरे दर्द की तुम कभी न दवा हो सके कुछ तार बिखरे, कुछ टूट गए ख्वाब अपने कभी…
अपनी हर सांस तो बस तेरी चाह में गुजरी तेरी सारी उम्र जमाने की परवाह में गुजरी सोचा था कहोगे उदास तुम मेरी खातिर न…
पटका तो ,कहीं दूर जा, गिरी ख़ामोशी अब खामोशियों के टुकड़े चुन रहा हूँ राजेश’अरमान’
ज़िंदगी की उधेड़बुन कबूतर गए दाने चुन राजेश’अरमान’
शरीर आत्मा में लगा कोई दीमक मन परमात्मा में लगा कोई दीपक क़र्ज़ सांसों का होता बस शरीर पर आत्मा बही-खातों में रखा कोई बीजक…
मर गई आत्मा ,शरीर कहने को ज़िंदा है पंछी मन का उड़ गया ,आँखों में परिंदा है राजेश’अरमान’
कभी बादलों से कभी बिजलिओं से बनती है सरगम कलकल बहते पानी चलती हवाओं से बनती है सरगम इठलाती घूमती बेटियां होती झंकार बनती है…
गम की फसलें सींचता आँखों की बारिश से हर ख्वाब ने दम तोडा अपनी ही गुजारिश से राजेश’अरमान’
अब मंज़िल मेरे साथ-साथ चलती है जब से बनाया मंज़िल अपने साये को राजेश’अरमान’
कोई वज़ह यूँ भी निकल आती तेरे मिलने की तारों की सजी डोली लेके आता कहार मेरे मन के द्वार मैं मन ही मन में…
चल पड़ा फिर जिस्म किसी राह में मन को छोड़ अकेला क्यों नहीं चलते दोनों साथ -साथ कोई रंजिश नहीं फिर भी रंजिश फूल की…
रात अपना ही कोई किस्सा बन जाता हूँ दिन के उजाले में कोई हिस्सा बन जाता हूँ निकल तो जाता हूँ बाज़ारों में कहीं शाम…
उसकी नज़रों की तलाशी में मेरे किरदार बदले से मिले मैं ढूंढ़ता रहा उसकी आँखों में चंद कतरे पर जमे से मिलें राजेश’अरमान’
जरूरत के हिसाब से , खुद से पहचान हुई कई हिस्से अब भी अजनबी है मेरे अंदर राजेश’अरमान’
हर भोर उगता सूरज नई किरणों के संग नए खेल रचता नई ऊर्जा का संचार दिन भर तपस कभी ज्यादा कभी कम इस ज्यादा इस…
वज़ूद अपना ज़माने से जुदा रख अपने अरमानों को गुमशुदा रख परिंदे के वास्ते अर्श की सरहदें कहाँ अपने अंदर कोई दोस्त कोई ख़ुदा रख…
पिंजरे तो खोल दिए लेकिन पंछी उड़ गया पिंजरे लेकर राजेश’अरमान’
बरपने लगा शोर कुछ अपने पाले सन्नाटों में कुछ उधर भी है खलबली उनके दिए काँटों में माना की कोई मरासिम नहीं उनके सायों से…
दरके आइनों को नाज़ुकी की जरूरत है गर आ जाएँ इल्ज़ाम यही तो उल्फत है फासले वस्ल के यू सायें से बढ़े जाते है ये…
वक़्त की चाल के अंदाज़ निराले तो न थे ख्वाब ही सो गए लेके कोई करवट शायद कहाँ तो आरजुएं थी तेरे मिलने की यां…
धुंधले आईने में कोई अक्स नज़र नहीं आता वक़्त की सुईया पकड़ने से वक़्त ठेहर नहीं जाता वो चिरागों सा रोशन कभी एक नूर सा…
रिश्तों की बानगियाँ अब तेजी से बदलने लगी है वास्ता लाश से कम कफ़न से ज्यादा हो गया है राजेश’अरमान’
ऊंची दीवारें भी पल में मिट जाती है बस नज़रें दीवार के पार जानी चाहिए राजेश’अरमान’
हर सांस है मुजरिम न जाने किस गुनाह में हर ख्वाईश है क़ैद न जाने किस गुनाह में न कुछ बस में तेरे न कोई…
ज़िंदगी कभी गूंथे हुए आटे की तरह लगती कभी फायदे की कभी घाटे की तरह लगती आस के फूल हर शाख पे खिलने दो टूटी…
कोई दिल का मेरे चारागर होता यूँ न तन्हा मेरा सफ़र होता आज फिर दिल ने आरजू की है घर के अंदर मेरा घर होता…
हर लम्हा गुजर गुजर कर कुछ कह गया अपनी आँखों में हल्का सा कुछ तैरता गया ज़िद जिनकी थी वो ज़िद में रह गए हाथ…
रोज़ होती रही तेरे वादों की बरसात कमाल ये के कभी हम भीग नहीं पाएं तंगदिल है मेरा या तेरा सिलसिला क़ाफ़िर न तुम समझे…
एक जरूरी दस्तावेज ही तो है जीवन न कागज़ अपना न स्याही अपनी फिर भी भ्रम अपना कहने का अपनी सासें अपनी धड़कन से विवाद…
मुड़े कागज़ की तरह माथे की लकीरें बन गई है मेरी किस्मत की हाथों की लकीरों से ठन गई है अपने हिस्से की गिरवी रखी…
कभी तो मेरे माजी का क़त्ल कर दिया जाएँ जख्म जैसा भी हो कुछ पल भर दिया जाएँ माना की शब की जीस्त दुआओं से…
पत्थर ही पत्थर है दिल की जेब मेँ है बड़ी सच्ची मगर गर्दिशों की बात है अब के गर्मिओं मेँ ठंडक है तो हैरत किसलिए…
जाते जाते कुछ कह गयी ज़िंदगी समझ पाया तो ढह गयी ज़िंदगी करते गुजरा हर सांसों का हिसाब ज़िंदगी से कुछ कम रह गयी ज़िंदगी…
बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है इन हवाओं से कब कोई मुड़ के देखा सेहरा की…
हर चेहरे अपने पर कोई आश्ना न मिला गिला खुद से मगर कोई आईना न मिला अपनी तक़दीर-बुलंदी का क्या कहना बर्क़ को जब कोई…
सिर्फ एहसास है वफ़ा फिर छूने को जी करता है यह कौन देता है सदा सुनने को जी करता है हर शख्स का वज़ूद जुदा…
बुझे चरागों को हवाओं का करम न दे मेरी हस्ती मिटने का कोई भरम न दे जो गुजरा नहीं खुद , मगर आखिर गुजरा तुम…
मेरे सफिनों का नाखुदा हो , जो तूफानों का तलबगार न हो मुझे ऐसा चराग बना दे जो हवाओं का कर्ज़दार न हो मेरे हिस्से…
कतरा कतरा लहूँ का जिस्म में सहम गया चलो इसी बहाने रगों में बहने का वहम गया वो कोई हिस्सा था मेरे ही जिस्म का…
उसने खौफ से कभी आइना साफ़ न किया आ जाएँ न नज़र कहीं तस्वीर साफ़ उसकी राजेश ‘अरमान’
तजुर्बों से सीखा मगर बस इतना सीखा फिर गिर पड़े तज़ुर्बा जो गिरने का था राजेश ‘अरमान’
हम लुत्फ़ कुछ बारिशों का यूँ उठा रहे है अपने आंसुओं को बारिशों में छुपा रहे है उसी को याद करना और हमेशा याद रखना…
मेरे तस्सवुर के रंग क्यों फीके होने लगे है मेरे सायें भी अब मुझसे दूर होने लगे है मैंने गिन गिन के सजाये थे जो…
रिश्तों का सत्य जो लगता यथार्थ से परे सदा मानते हुए छलावा हम जुड़े रहना चाहते है सदा ये रिश्तें जो खून से बनते ,खून…
फूलों की हसरत की ,यही कसूर है मेरा काटें ही काटें मिले ये नसीब है मेरा सोचा था तूफां से कस्ती पार निकल जाएगी तूफां…
ज़िंदगी धुप -छोंव् तपती रेत धसते पाँव राही सुप्त बिखरे ख्वाब मंज़िल लुप्त टूटे सपने अहसास हुआ थे ये अपने जख्म हरे जो की पीड़ा…
अरमां था ज़िंदगी से कभी मुलाकात होगी बिठा पलकों पे कुछ खास बात होगी सोचता था होगी ज़िंदगी मेरी फूलों की तरह निकाले होगी घूँघट…
रेत के महलों की तरह ,हरदम ढहती है ये ख्वाइशें फिर भी हर पल क्यों सजती सवरती है ये ख्वाइशें उम्मीदे इन्ही ज़िंदा रखती सांसों…
हम उन लम्हों की याद को जेहन में यु संजोये बैठे है रहकर भी दूर जैसे आँखों में बसता है कोई उन लम्हों की सांसें…
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