अमोली
कानों में ठूठे लगाए, बहर भट्ट सी!
ज्ञान के प्रभाव से आत्मचित्त,
मोहक सुवर्णा सी।
चेहरे पर कठोर भाव,
प्रेम में टूटी शहतीर सी।
तापसी!
बिन प्राणों के शवास सी।
स्वरागिनी!
खुद में डूबी
आत्ममुग्ध ,स्वप्नली सी।
नाकाम थी
सारी कोशिशें,
उसके आकर्षण से छूट जाने की।
शुष्क चेहरा, तीखी निगाहें
पता नहीं कहां सीखी थी?
ऐसी अदाएं दिल जलाने की।
उसकी सुंदरता में डूबते ही
उसका व्यक्तित्व उतर जाता था
दिल की गहराइयों में।
पर चेहरे की कठोर भाव से लगता था कि
सात जन्म भी कम पड़ जाएंगे उसे मनाने में।
कैवल्य की मूरत,
अभिधा!
तुम्हें पाने के लिए
चढ़नी होंगी मुझे भी
प्रेम में बैराग्य की सीढ़ियां
तब शायद!
मिल जाओ तुम मुझे
अमोली!
दिल से दिल की जोड़कर कड़ियां।
कैवल्य=स्वतंत्रता
अभिधा=निडर महिला
अमोली=अनमोल
शहतीर=लकड़ी का टूटा लट्ठा
तापसी=तपस्वी
निमिषा सिंघल
सुन्दर रचना
Thank you
वाह
Thank you
Nice
❤️❤️❤️❤️
Sunder
🙏🙏🙏🙏
Good
Thanks dear
Nice
Thank you