आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं

आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं
तेरी बेरुखी से हैरान-सी हूँ मैं
जमीं पर पैर भी नहीं रुकते
तितलियों के पंख भी रचते
खाली मैदान-सा है दिल मेरा
जहाँ परिंदे भी नहीं बसते
दिल के फैसलों में थोड़ी
नादान-सी हूँ मैं
जाने क्यूं
आज कुछ परेशान-सी हूँ मैं !!

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हम परिंदे हैं…

हम बसाएंगे अपना घरौंदा कहीं… हम परिंदे हैं एक जगह रुकते नहीं… जहाँ मिलती हैं खुशियाँ जाते हैं वहाँ हम गमों में घरौंदा बनाते नहीं……

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