इक शाम हूँ ख़मोशी की आवाज हूँ मैं।
इक शाम हूँ ख़मोशी की आवाज हूँ मैं।
मैं इक समंदर हूँ समझो बेहिसाब हूँ मैं।।
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सुनो उम्र भर मुझसे रूठकर रहने वाले।
कहते हो सबसे,की तुमसे नाराज हूँ मैं।।
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इक शहर था मैं जिसके बासिन्दे नहीं है।
फिर क्या कहूँ खुद से की,आबाद हूँ मैं।।
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मुफलिसी से घिरती है जब जिंदगी कोई।
न जगाओ नींद से,रोटी वाला ख्वाब हूँ मैं।।
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मेरे लफ्जो को पढ़ने की फुरसत तुम्हें नहीं।
माना की मैं कल रहूँ न रहूँ,पर आज हूँ मैं।।
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तमाम मुश्किलो से गुजरी है जिंदगी मेरी भी।
सबका नहीं पर कुछ सवालों का जवाब हूँ मैं।।
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खुद को तुम कहा कहा ढूंढ रहे हो साहिल ।
इक अधूरे पन्ने हो,न कहो की किताब हूँ मैं।।
@@@@RK@@@@
वाह बहुत सुंदर