गणपति अपने गाँव चले

गणपति बप्पा मोरया, पुड्च्या वर्षी लौकरया
मोरया रे, बप्पा मोरया रे \-४
गणपति अपने गाँव चले, कैसे हमको चैन पड़े
जिसने जो माँगा उसने वो पाया,
रस्ते पे हैं सब लोग खड़े
गणपति बप्पा दुख हरता, दुख हरता भाई दुख हरता
दस दिन घर में आन रहे, भक्तों के मेहमान रहे
सारे शहर में धूम मची, जोश से जनता झूम उठी
उनको प्यारे सब इंसान राजा रंक हैं एक समान
दुख हरता भाई दुख हरता
किसी को कुछ वरदान दिया, किसी को कोई ज्ञान दिया
हैं चले सभी को ख़ुश करके, खाली खाली झोलियों को भरके
आयेंगे साल के बाद इधर, लोग करेंगे याद मगर
थोड़े ही दिन रहे, थोड़े दिनों में करके चले ये काम बड़े
सारे घर उनको घर हैं, उनको एक बराबर हैं
ऊँचे महल अमीरों के हों या हम गरीबन के झोपड़े
मस्त पवन ये फिर ले आई, मौजों की नैया लाई
गणपति उस पार चले, लेकर सबका प्यार चले
सफल हुई सबकी पूजा, ऐसा न कोई बिन दूजा
घटा गगन पर लहराई, घड़ी विसर्जन की आई
भूल चूक हो माफ़ हमारी, हम सब हैं बड़े नादान बड़े ।
– Feran
Nice one
Good
वाह बहुत सुंदर रचना