तकदीर और तदबीर
उधर किसी की हसरतें पुरी हुई
इधर किसी का दिल जला
क्या कहे दोस्त सब की
अपनी अपनी तक़दीर है
अचानक एक दिन उनका ख़त आया
उस में एक ही पंक्ति लिखा था
ए क़ाबिल दिल तकदीर के संग
तदबीर होना भी जरुरी है
मेरा उदास मन फिर
अतीत की लहरों में खो गई।
बहुत ही खूबसूरत अल्फाजों से आपने अपनी कविता को सजाया है काबिले तारीफ
शुक्रिया प्रज्ञा जी।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
धन्यवाद। समीक्षा अनमोल है।
Nice line