दिन का वो कोना
दिन का वो कोना जिसे सब शाम कहते हैं ,
मैं उनको काट कर अलग रख देता हूँ..
मेरी सब शामें बंद हैं अलमारी में बरसों से…
चुभती हुई रातों से जो एक सुई मिल जाए,
तो लम्बे से दिनों से एक धागा मांगूँ..
उन टुकड़ों को सी कर..
एक चादर जो बन जाए कभी..
तो पूरे दिन को मैं शाम की तरह जी लूँ.
Nice
Nice
Waah
Wah
बहुत खूब
Wah kya khub
गुड