दिल-ए-ज़िगर ……

दिल-ए-ज़िगर ……
मेरी गुस्ताखिॅया अंदाज़–ए–इश्क थी मेरी
मेरी शोखियाँ दीदारे–ए–खुदा थी तेरी
मेरी वही दिल-ए-ज़िगर की शोखी पे
क्यों आज बिखर गये सब जज़्बात
कहीं ऐसा तो नहीं,
तू आज इंतज़ार में था
अपने दिल-ए-कायर की बेवफ़ाई को
झूठी नाराज़गी का जामा पहनाने को
शिकायत नहीं यारा के दिल तोड़ा
शिकायत सिर्फ़ इतनी सी ए-बेरहम
मेरा ग़रूर-ए-दिल तोड़ना ही था
तो सर उठा सच तो बोल जाता
प्यार निभाने का सलीका तो
तुझसे कभी हो पाया नही
दिल तोड़ने का सलीका भी
तुमसे बन पाया नही
ए बेवफा अच्छा ही हुआ
जो तू हमसे रुठ गया
यूई ने भी कभी कोई
कच्चा रिश्ता निभाया नहीं
…… यूई
aprateem kavya rachna
Good