पथ में भटके राही जो हैं
हे तरंगों !
सज के निकलो
भेदना तुमको हृदय है
रोंकना तुमको है
पथ में भटकते राही जो हैं
राह दिखलानी उन्हे है
जो बिछड़कर
स्वयं से
खो गये फिर ना मिले
जोड़कर उनको स्वयं से
राह दिखलानी तुम्हे है
बीनकर पथ के कंकरीट
पुष्प बिखराने तुम्हे हैं
बहकर सरिता प्रेम की
सागर में मिलना तुम्हे है
हे तरंगों !
सज के निकलो
भेदना तुमको हृदय है….
बहुत ही प्रेरक रचना
धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
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सुन्दर
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