परी
विधा : तांटक छंद
यह परियों की एक कहानी,परिस्तान से मैं लाया ।
देख रहा था यह सब छुपकर,तभी अचानक वो आया ।।
चन्द्र वदन कंचन सी काया, सब कुछ परियों सा पाया ।
ऐसा वैसा रूप नही था,जो मेरे दिल पर छाया ।।
नैन कटीले,अधर गुलाबी,रूप कहाँ से ये पाया ।
घोल दिया मृदु ज्यों कानों में,गीत प्रेम का हो गाया ।।
स्वप्न सलोना था कोई या,थी कोई जादू माया ।
परिस्तान की शहजादी को,देख देख मन हर्षाया ।।
✍?नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”©
+91 84 4008-4006
Behtareen
धन्यवाद
धन्यवाद
Nice 🙂
हार्दिक धन्यवाद