पवित्र नारी ही क्यों हो
पवित्र नारी ही क्यों हो
पुरुष की पवित्रता का क्या मोल नहीं ?
पतिव्रता नारी ही क्यों
पुरुष के पत्नी व्रत का क्या कोई तोल नहीं ?
सारी सीमाऐं
सारी गरिमाएं
मर्यादाएं
नारियों तक ही सीमित हैं
पुरुषों पर कोई जोर नहीं
नारी ही सती हो
अग्नि परीक्षा भी उसी की हो
तुलसी बाबा
ताड़न की अधिकारी कहें
कबीर जी महा ठगिनी कहें
उसी को नकाब लगाना है
अपना चेहरा छुपाना है
चरणों की दासी भी वही है
प्रेम की प्यासी भी वही है
उसी का निर्वासन होता है
क्या -क्या हैं नारी के धर्म
अपनी इच्छा का करे वही हमेशा त्याग
मिलता जीवन में सिर्फ बचा हुआ भाग
पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती
बेटे की सलामती के लिए
व्रत , पूजाएं करती
क्या
जरूरत नहीं है ?
उसके लिए प्राथना,व्रत और पूजा
शायद यही कारण है
कभी भ्रूण हत्या
कभी दहेज़ हत्या
क्यों कि
एक नहीं रहेगी
तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा
नारी जीवन
एक भार है
बहुत वज़नदार है
जिसको हर कोई हल्का करना चाहता है !
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Anjali Gupta - April 7, 2016, 8:35 am
hirday shaprshi kavita…
Tej Pratap Narayan - April 7, 2016, 10:22 am
shukriya Anjali ji.
Anjali Gupta - April 9, 2016, 11:25 am
thanks for sharing such a poem