पैसा बोलता है

( पैसा बोलता हैं.. )

जेब ढीली बाजार में
ऑख टके सामान को
जी मचले बीच बाजार में
बेवस लाचार सम्भाले पैसे
हाथ पाव किये भागे पैसा
मुहँ बन्द कर दे बाजार में
पैसा बोलता हैं……..

बाजार पहुँच करता राज हैं पैसा
आने से घर इतराता हैं पैसा
छोटे बडे सभी से पैसा
जी छुडाना चाहता हैं
कभी इधर कभी उधर
हर पल भागता रहता हैं पैसा
इंसान की नियत बदले तो
पैसा बोलता हैं……..

पैसा हैं जिसके पास
अकड कर चलना हैं पहचान
गाडी बंगला घर परिवार
पैसे के बिना हैं बेकार
समाज में उसी का हैं पहचान
जिसका चलता पैसे पर राज
लगा माथे पर टिका लम्बा
करता हैं देखो वह व्यपार
इशारे में जब हो जाये काम
पैसा बोलता हैं…….

महेश गुप्ता जौनपुरी

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