बचपन
तितली सी उङती फिरती थी,
ठुमक ठुमक कर,इतराती,
सारे रंग संजो लेती थी,
खुशियों से मुस्काती।
माँ-बाबा से बकबक बकबक,
भाई से नादां सी खटपट,
गुङियों में तमाम ज़िन्दगी जी लेना,
सपनों की सुंदर सी दुनिया में पलना।
ना मेरा था,ना तेरा था,
सब कुछ जब हम सबका था,
झगङे होते थे जब क्षण भर के,
मुस्कुराते थे सदा जब मन भर के।
इसे मारना,उसे रुलाना,
फिर खुद ही जाकर पुचकारना,
कट्टी-अब्बा का वो खेल,
कैसा था वो अनूठा मेल।
खो-खो,किकली,पकङम पकङाई,
स्टापू,पोशम पा और छुप्पन छुपाई,
पासिंग द पार्सल,फ़ारमर इन द डेन,
भाई किसकी है बारी,वन,टू,फाईव,सिक्स,टेन।
ना कपङों की परवाह थी,
ना मंदिर-मस्जिद की थाह थी,
जब सारा जहां था मकान अपना,
अनंत खुशियों से भरा सपना।
जब सारे हम थे भाई बहन,
समझ पर तब थी बङी गहन,
दुश्मनी किसे कहते थे,हमें ना था पता,
तब हमारे दिलों को,किसीने ना था बांटा।
खुशियों की थीं किलकारियाँ,
मौज मस्ती से भरी सवारियाँ,
पाक,निर्मल, छोटे से दिल थे,
जिनमें बङे बङे सपनों के बिल थें।
ना ऊँच नीच, ना जात पात,
हमको तो बस करनी होती,अपने दिल की बात,
एक से ही थे हम सबके सपने,
सारे हम सब थें जब,अपने ही अपने।
खाते पीते साथ साथ जब,
एक ही था जब हम सबका रब,
बचपन के वह दिन निराले,
कोई बीते सालों से निकाले ।
-मधुमिता
झगङे होते थे जब क्षण भर के….100% true. Nice poem
शुक्रिया अजय
Titli ki tarah …rango se bharpoor kavita
शुक्रिया पन्ना
Nice one
शुक्रिया रोहन