बिखरे ख्वाबों को
बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है
ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है
इन हवाओं से कब कोई मुड़ के देखा
सेहरा की रेत पे बारहा लिखता क्या है
गैर हो न सके, न अपनों में रहे
देख तजुर्बों से तुझे दिखता क्या है
वो बैठा रहा सच की बाँहों में
देख सही तेरे बाजार में बिकता क्या है
यही दुंनिया के दस्तूर रह गए ‘अरमान’
डूबते चाँद को बारहा तकता क्या है
बिखरे ख्वाबों को बारहा चुनता क्या है
ज़ख़्म तो जख्म है बारहा गिनता क्या है
राजेश’अरमान’
बहुत सुंदर
Gajab