मजदूर की मजबूरी
हां मजदूर है; सो मजबूर हैं, उनकी क्या खता; जो घर से दूर हैं
पैदल चल- चल; थक कर चूर हैं, सड़कें सारी; तपती तंदूर है,
ट्रेनों में भी; भीड़ भरपूर है, सरकारों को आखिर; कैसे मंजूर है
कैसा यह; बना दस्तूर है, जो मजदूर है; आज मजबूर हैं
जिसने सबके सपनों को, मेहनत से किया पूरा
आज उसी के सपनों का, कोविड ने कर दिया चूरा
कहीं पांव में छाले, कहीं खाने के लाले
पानी पिये तो खाली, पड़े हैं सारे प्याले
इंसानों की मंडी में अब, इंसानियत ना दिखती
वरना पलायन करते मजदूरों की भीड़ यूं ना दिखती
जब तक काम तब तक खुश, पूरे प्रदेश का वासी
अब काम निकला तो फेंक दिया, समझ कर बासी
कर्मस्थली से जन्मस्थली, की यह दूरी,
लगने लगी है अब, धरती से चंदा की दूरी
उनके पास नहीं चेक, ना ही है कोई जेक
सरकार क्यों करे परवाह, वो नहीं है वोट बैंक
आज सुअवसर आया है, चलो मानवता दिखलाये
भूल जाये क्षेत्र की बातें सारी, सब भारतीय बन जाये
ना बैठे सिर्फ सरकार भरोसे, सब हाथ मदद का बढ़ाये
भावना वसुधैव कुटुंबकम् की, जागृत कर दिखलाये
Nice
Nice
Wah👏👏👏
👌👌👌
Superb
Superd
Mst
वाह
Gajab
Kya baat he maza aa gya
Nice
Mst
Good
Nice one
Very nice poem
👏👏
👏👏