मानव है मजबूर
कैसे हो बेकारी दूर
मेहनतकश को काम नहीं है, बैठा है मजबूर।
कब तक ऐसा रोग रहेगा, सोच रहा मजदूर।
रोजी-रोजी की चिंता है, घर से आया दूर।
मन में चिंता है जीवन की, कठिनाई भरपूर।
मानव मानव में दूरी है, लोग रहे हैं घूर।
कहे सतीश कैसे दिन आये, मानव है मजबूर।
मानव मानव में दूरी है, लोग रहे हैं घूर।
कहे सतीश कैसे दिन आये, मानव है मजबूर।
_________ समसामयिक यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई कवि सतीश जी की सत्य रचना, उम्दा लेखन
बहुत खूब