मैं जिंदगी जी रहा हूं।
मैं जिंदगी जी रहा हूं।
दूसरों के दिए एहसानों,
पर पल रहा हूं।
भटक रहा हूं मैं,
अपने आप से।
घर के रास्ते,
बार-बार टोह रहा हूं।
कहां जाऊं,
मैं किस डगर।
जो भूख मिटा दे,
मेरी इस कदर।
यह थकान जो मैं,
लादकर लाया हूं।
तपती धूप में,
मैं लौट आया हूं
मैं कौन हूं?
पहचाना मुझे।
हां, मैं प्रवासी मजदूर हूं।
रोटी की भूख और पानी की घूंट।
कि तलाश में,
फिर अपने गांव लौट आया हूं।
कहां मिली मुझे,
दो पल चैन की रातें।
आंखों में दुखों का सैलाब लाया हूं।
शहर में गुजारा कर रहा था मैं,
अब तो गुजर आया हूं।
हां, मैं लौट आया हूं।
बहुत सुंदर रचना है। साथुवाद प्रतिमाजी
प्रतिमाजी मेरा पहला कविता संग्रह ऑनलाइन उपलब्ध है इस लिंक पर। आपकी प्रतिक्रिया प्रतीक्षित रहेगी
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बहुत बहुत धन्यवाद मैम
और आपको भी कविता संग्रह के ऑनलाइन प्रकाशन के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं
ईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ रखें और आप ऐसे ही अच्छी अच्छी कविताएं हमें पढ़ने का मौका दें। 🙏🙏
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद सर
Nice
Thank you
Superb
Thank you so much