सरहद के शहीद

वीर थे अधीर थे सरहद के जलते नीर थे,
इस देश के लिए बने तर्कश के मानो तीर थे,

भगतसिंह राज गुरु सहदेव ऐसे धीर थे,
बारूद से भरे हुए ये जिद्दी मानव शरीर थे।

इंकलाब से हिलाये दिए अंग्रेज चीर थे,
स्वतंत्रता संग्राम में फूँके सहस्र शीष थे,

इतिहास के पटल पे छोड़े स्वर्णिम प्रीत थे,
तिरंगे में लिपटके बोले वन्दे मातरम् गीत थे।।
राही अंजाना

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

Responses

+

New Report

Close