सरहद के शहीद
वीर थे अधीर थे सरहद के जलते नीर थे,
इस देश के लिए बने तर्कश के मानो तीर थे,
भगतसिंह राज गुरु सहदेव ऐसे धीर थे,
बारूद से भरे हुए ये जिद्दी मानव शरीर थे।
इंकलाब से हिलाये दिए अंग्रेज चीर थे,
स्वतंत्रता संग्राम में फूँके सहस्र शीष थे,
इतिहास के पटल पे छोड़े स्वर्णिम प्रीत थे,
तिरंगे में लिपटके बोले वन्दे मातरम् गीत थे।।
राही अंजाना
Waah bhai