सहारे बदल गए
हम भी है तुम भी हो ,पर ये सहारे बदल गए
लहरें तो वही है मगर ये किनारे बदल गए
लोग पत्थर के बन गए है , ,दिल हमारे है आईने
हम तो अब भी वही मगर ये हमारे बदल गए
कल तक महका करती थी बगियाँ ये फूलों से ,
माली तो वहीँ मगर चमन के नज़ारे बदल गए
इस ईमारत की बुनियाद तो अब भी है बुलंद
बस रहने वालों के हाथों के इशारे बदल गए
यादों के दिए आखिर कब तक जलाये ‘अरमान’
अफ़सोस तेरे बदलने का यूँ तो सारे बदल गए
राजेश’अरमान’
२७/०७/१९९०
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