हक़ मेरी माँ को होता

“हक मेरी माँ को होता”

 

मेरी तकदीर में जख्म कोई न होता,

अगर तकदीर बनाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी तस्वीर पे आज धूल न होता,

अगर तस्वीर पोछने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी आँखों में अश्क आया न होता,

अगर आँख सजाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी तकफिन में कोई वहम न होता,

अगर तकफिन बनाने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी इमारत दुःखो से भरा न होता,

अगर इमारत भरने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी नसीहत कोई फर्मान न होता,

अगर नसीहत देने का हक मेरी माँ को होता,

 

मेरी मुअल्लिमा का ऐसा तक्रिर् न होता,

अगर मुअल्लिमा बनने का हक मेरी माँ को होता,

 

लालजी ठाकुर दरभंगा

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