ग़ज़ल
2.01(63)
मैं ! तुझे छू कर; ‘गु…ला…ब’ कर दूँगा !
ज़िस्म के जाम में, ख़ालिस शराब भर दूँगा !!
तू; मेरे आगोश में, इक बार सही; आ तो ज़रा !
ख़ुशबू—सा बिखर जाएगी, सारा हिसाब कर दूँगा !!
: अनुपम त्रिपाठी
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011
गोयाकि ; ग़ज़ल है ! [A03.E010]
ग़ज़ल———– : अनुपम त्रिपाठी
और कुछ देर अभी हुस्न सजाये रखिए ।
नाज़ो—अंदाज़ अगर हैं तो उठाए रखिए ॥
भेद ये; दिल का खोल दें न कहीं ।
अश्क; पलकों में कहीं गहरे दबाए रखिए ॥
देखिए; वक़्त ! दबे पाँव गुज़र जाएगा ।
दिल के किस्सों से उसे पास बिठाये रखिए ॥
रंगते—ज़िस्म हो कि; हो ये महक गेसू की ।
नीमकश तीरों को पलकों पे चढ़ाये रखिए ॥
दिल के इस दर्द को न और जुबां देना तुम ।
गम का सहरां यूं ही सीने से लगाए रखिए ॥
किसको मालूम है कि; कब वो इधर आ जाएँ ।
राह में उनकी नज़र अपनी बिछाए रखिए ॥
देखिए; उनके ! इधर आने की, आई है खबर ।
आस की शम्अ को पुरज़ोर जलाए रखिए ॥
इस तरह बात न कीजै कभी तनहाई से ।
दिल के ज़ख़्मों को जमाने से छुपाए रखिए ॥
कौन जाने कि; कभी ख्वाव में आओ ‘अनुपम’ ।
ज़िस्मे—नाज़ुक को निगाहों से बचाए रखिए ॥
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; मेरे आगोश में, इक बार सही; आ तो ज़रा !
ख़ुशबू—सा बिखर जाएगी, सारा हिसाब कर दूँगा !!….बहुत खूब सर!!
धन्यवाद मित्र
very nice
आभार अनिरुद्ध जी
वाह
Good