कहीं आग कहीं पानी
बहुत हो चुकी नफरत की आग
जल रहे हैं दिल के जंगल
मुहोब्बत कर चुके हैं खाक,
अब नहीं रही वैसी धाक
जो एक नजर पर
चुरा ले जाती थी दिल,
अब तो नजरें मिला पाना भी
हो गया है मुश्किल,
क्योंकि सच सामने आते ही
रिश्तों की बुनियाद जाती है हिल।
कहीं आग है
कहीं पानी है,
फिर भी न बुझा पाये तो
हमारी नादानी है।
वाह बहुत खूब कहा है
बहुत धन्यवाद
लाजवाब अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद
कहीं आग है
कहीं पानी है,
फिर भी न बुझा पाये तो
हमारी नादानी है।
************जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराती हुई बहुत सुन्दर रचना। शिल्प और भाव का सुंदर समन्वय
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
धन्यवाद