गुरूकुल के वो दिन
क्या कहने उस दिन के
जब गुरूजी हुआ करते थे।
घर में हो या पाठशाला में
तन-मन से बच्चे पढ़ते थे।।
एक आदर था सबके दिल में
ग्रंथ गुरू और ज्ञान प्रति।
होकर उत्तीर्ण कक्षा से सब
योग्य पुरुष सब बनते संप्रति।।
काश ‘विनयचंद ‘ वो दिन
भारत में फिर आ जाता।
रोजगार की कमी न रहती
जीवन में हर सुख छा जाता।।
पुनरुक्ति अलंकार अनुप्रास अलंकार तथा वियोग श्रृंगार रस का उत्तम प्रयोग करके आपने अपने हृदय में गुरु के प्रति जो सम्मान रखा है वह प्रकट हो रहा है धन्यवाद गुरु की याद दिलाने के लिए जो हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है हमें हमेशा उनका आदर करना चाहिए
शुक्रिया जनाब
वेलकम
वाह वाह शास्त्री जी
धन्यवाद