चुभ रहा हूँ दोस्तो
टूट कर चारों तरफ बिखरा हुआ हूँ दोस्तो।
काँच सा तीखा, दिलों में, चुभ रहा हूँ दोस्तो।
फर्क इतना है कि मैं टूटा नहीं हूं खुद ब खुद।
मार कर पत्थर बड़े, रौंधा गया हूँ दोस्तो।
टूट कर चारों तरफ बिखरा हुआ हूँ दोस्तो।
काँच सा तीखा, दिलों में, चुभ रहा हूँ दोस्तो।
फर्क इतना है कि मैं टूटा नहीं हूं खुद ब खुद।
मार कर पत्थर बड़े, रौंधा गया हूँ दोस्तो।
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वाह जी वाह पाण्डेय जी
सादर नमस्कार और धन्यवाद
Nice poem
Thanks
Nice poem
Thank you
बहुत अछि लगी
ह्रदयस्पर्शी..
सादर धन्यवाद
एक परेशान व्यक्ति की व्यथा का सटीक चित्रण।
हृदय स्पर्शी रचना….
इस सुन्दर समीक्षा हेतु बहुत बहुत धन्यवाद।
सुंदर
सादर धन्यवाद जी
🙏✍👌✍👌
धन्यवाद जी
बहुत सुंदर रचना है
बहुत सारा धन्यवाद जी
सुन्दर
सादर आभार जी
बहुत सुन्दर 💐💐💐💐