छलिया मोहन प्यारे

कृष्ण कन्हैया छलिया तेरे,
कितने हैं अद्भूत रुप।
किया बांवरा नर नारी को,
बता दो कितने हैं स्वरुप।।

✍महेश गुप्ता जौनपुरी

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